ख्यमंत्री रघुवर दास और प्रधान सचिव सुनील वर्णवाल से मुलाकात की थी.
इन लोगों ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने लोगों को अनूसूचित जनजाति का आरक्षण खत्म करने, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू करने को लेकर अपनी मांगें रखी हैं.
इसी मुद्दे पर नौ अगस्त को राजधानी रांची में राज्य भर के आदिवासी प्रतिनिधियों ने धरना दिया था.
मुख्यमंत्री रघुवर दास भी केंद्रीय सरना समिति को और मजबूती बनाने में जोर देते रहे हैं. पिछले साल बीजेपी सरकार ने झारखंड में धर्म स्वातंत्र्य क़ानून लागू किया है. स क़ानून के लागू किए जाने के बाद सरना समुदाय से जुड़े संगठनों ने जुलूस निकालकर ख़ुशी जाहिर की थी जबकि ईसाई संगठन जगह- जगह इसके विरोध में सड़कों पर उतर गए थे.
आदिवासी विषयों के जानकार तथा सरना समाज के प्रतिनिधि लक्ष्मी नारायण मुंडा का कहना है कि पहनई ज़मीन पर चर्च का निर्माण बेशक ग़लत है.
उन्होंने कहा, "अगर गढ़खटंगा के आदिवासी स्वाभाविक तौर पर इसका विरोध कर रहे हैं, तो जायज कहा जा सकता है, लेकिन जो संगठन चर्च पर निशाने साध रहे हैं उन्हें भी परखने की ज़रूरत है कि आखिर वे किनके इशारे पर चलते हैं."
मुंडा पूछते हैं कि आदिवासियों के दमन और संकट के और भी सवाल हैं. इसे वे लोग क्यों नहीं उठाते?
रविवार को दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के आधिकारिक उद्घाटन के दौरान भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली प्रदेश में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लोग भिड़ गए. यह एक बहुत बुरा दृश्य था. इससे कई सवाल उठ रहे हैं.
सवाल ये है कि क्या उस छेत्र यानी उत्तर पूर्व दिल्ली के सांसद और दिल्ली बीजेपी प्रमुख मनोज तिवारी को उद्घाटन समारोह में बुलाना नहीं चाहिए था?
दूसरा सवाल ये कि क्या मनोज तिवारी को बिना आमंत्रण के वहां जाना चाहिए था? और तीसरा सवाल ये है कि सरकारी प्रोटोकॉल क्या कहता है?
संडे गार्डियन नामक अख़बार में कॉलम लिखने वाले पंकज वोहरा की दिल्ली की सियासत पर गहरी नज़र है. वो कहते हैं कि मनोज तिवारी उस छेत्र से चुने हुए सांसद हैं और इसलिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चाहिए था कि उन्हें उद्घाटन समारोह में निमंत्रित करते. वो सांसद के बिना बुलाए वहां जाने के भी पक्ष में नहीं हैं.
प्रोटोकॉल का जहाँ तक सवाल है पंकज वोहरा कहते हैं, "ये प्रोटोकॉल का मुद्दा नहीं है. ये पुल जनता के लिए बना है. वहां के चुने हुए सांसद और जनता के दूसरे प्रतिनिधियों को बुलाना चाहिए था. मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी बुलाना चाहिए था जिनके ज़माने में ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था."
आम आदमी पार्टी के मंत्री और ख़ास तौर से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ये कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली की पूरी जनता को बुलाया था. लेकिन रविवार के हादसे के बाद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने एक ट्वीट में बयान दिया कि उन्होंने जान बूझ कर मनोज तिवारी को नहीं बुलाया.
वो आगे कहते हैं, "यह मोदी सरकार का शासन है जिसके अंतर्गत दिल्ली में निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री को किसी भी उद्घाटन समारोह में आमंत्रित नहीं किया जाएगा. हमने जानबूझकर (तिवारी) को आमंत्रित नहीं किया था."
सिसोदिया ने दावा किया कि "आईटीओ में स्काईवॉक के उद्घाटन के लिए दिल्ली सरकार से किसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया था."
पंकज वोहरा कहते हैं कि वो आम आदमी पार्टी की इस शिकायत को समझते हैं. "दिल्ली में चुनी सरकार को केंद्र सरकार ने हर तरह से बेइज़्ज़त करने की कोशिश की है. उनके काम में बाधाएं डालने की कोशिश की है. मुख्यमंत्री को कई उद्घाटन समारोहों में नहीं बुलाया गया. तो इस तरह से इनकी दुश्मनी गहरी हो चुकी है. तो उनके (मनोज तिवारी को न बुलाने के) फ़ैसले को इस दृष्टिकोण से भी देख सकते हैं."
पंकज वोहरा कहते हैं कि प्रोटोकॉल को अब कोई सत्तारूढ़ पार्टी नहीं मानती. लेकिन प्रोटोकॉल है. हर राज्य सरकार का औपचारिक रूप से प्रोटोकॉल लिखित रूप में मौजूद है. दिल्ली सरकार के प्रोटोकॉल के अनुसार किसी भी बड़े समारोह में उपराज्पाल मुख्यमंत्री की तरफ़ से वीआईपी गेस्ट बुलाते हैं जिनमे सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्रियों के अलावा, विपक्ष के नेता, सांसद और विधायक, पूर्व सियासी और सरकारी नेताओं के नाम भी शामिल किए जाते हैं.
प्रोटोकॉल के अलावा सत्ता में परंपरा की अपनी एक जगह है. पिछले कई सालों की परम्परा विपक्ष के नेताओं को सरकारी समारोहों में बुलाने की है. पंकज वोहरा बीजेपी के एक बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के काल को याद करते हुए कहते हैं कि वो हर पार्टी के नेताओं से अच्छे संबंध रखते थे और सरकारी समारोहों में सभी नेताओं को निमंत्रण भेजते थे. शीला दीक्षित ने अपने 17 साल के काल में सभी नेताओं से संबंध बना कर रखने की कोशिश की
लेकिन ये भी सभी मानते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दिल्ली की चुनी सरकार के साथ भेद-भाव का सलूक किया गया है. सोशल मीडिया पर इसके उदहारण भी दिए जा रहे हैं.
साल 2009 में दिल्ली से उत्तर प्रदेश (नोएडा) जाने वाली पहली मेट्रो लाइन के उद्घाटन में एक तरफ़ दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शामिल थीं तो दूसरी तरफ़ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती.
लेकिन पिछले साल मजेंटा लाइन के उद्घाटन के समय नरेंद्र मोदी के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल थे लेकिन अरविंद केजरीवाल को इसमें नहीं बुलाया गया था.
मोदी के पक्ष में कहने वालों का तर्क ये है कि ये उद्घाटन समारोह नोएडा में हुआ था इसलिए यूपी के मुख्यमंत्री आए थे और दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया गया था. लेकिन मैजंटा लाइन के अधिकतर स्टेशन दिल्ली में हैं और दिल्ली का इसके निर्माण में एक बड़ा योगदान है
पंकज वोहरा कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल एक बड़े दिल वाले नेता का सबूत देते हुए मनोज तिवारी को बुलाते तो लोगों में इससे एक अच्छा पैग़ाम जाता.
इन लोगों ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने लोगों को अनूसूचित जनजाति का आरक्षण खत्म करने, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू करने को लेकर अपनी मांगें रखी हैं.
इसी मुद्दे पर नौ अगस्त को राजधानी रांची में राज्य भर के आदिवासी प्रतिनिधियों ने धरना दिया था.
मुख्यमंत्री रघुवर दास भी केंद्रीय सरना समिति को और मजबूती बनाने में जोर देते रहे हैं. पिछले साल बीजेपी सरकार ने झारखंड में धर्म स्वातंत्र्य क़ानून लागू किया है. स क़ानून के लागू किए जाने के बाद सरना समुदाय से जुड़े संगठनों ने जुलूस निकालकर ख़ुशी जाहिर की थी जबकि ईसाई संगठन जगह- जगह इसके विरोध में सड़कों पर उतर गए थे.
आदिवासी विषयों के जानकार तथा सरना समाज के प्रतिनिधि लक्ष्मी नारायण मुंडा का कहना है कि पहनई ज़मीन पर चर्च का निर्माण बेशक ग़लत है.
उन्होंने कहा, "अगर गढ़खटंगा के आदिवासी स्वाभाविक तौर पर इसका विरोध कर रहे हैं, तो जायज कहा जा सकता है, लेकिन जो संगठन चर्च पर निशाने साध रहे हैं उन्हें भी परखने की ज़रूरत है कि आखिर वे किनके इशारे पर चलते हैं."
मुंडा पूछते हैं कि आदिवासियों के दमन और संकट के और भी सवाल हैं. इसे वे लोग क्यों नहीं उठाते?
रविवार को दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के आधिकारिक उद्घाटन के दौरान भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली प्रदेश में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लोग भिड़ गए. यह एक बहुत बुरा दृश्य था. इससे कई सवाल उठ रहे हैं.
सवाल ये है कि क्या उस छेत्र यानी उत्तर पूर्व दिल्ली के सांसद और दिल्ली बीजेपी प्रमुख मनोज तिवारी को उद्घाटन समारोह में बुलाना नहीं चाहिए था?
दूसरा सवाल ये कि क्या मनोज तिवारी को बिना आमंत्रण के वहां जाना चाहिए था? और तीसरा सवाल ये है कि सरकारी प्रोटोकॉल क्या कहता है?
संडे गार्डियन नामक अख़बार में कॉलम लिखने वाले पंकज वोहरा की दिल्ली की सियासत पर गहरी नज़र है. वो कहते हैं कि मनोज तिवारी उस छेत्र से चुने हुए सांसद हैं और इसलिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चाहिए था कि उन्हें उद्घाटन समारोह में निमंत्रित करते. वो सांसद के बिना बुलाए वहां जाने के भी पक्ष में नहीं हैं.
प्रोटोकॉल का जहाँ तक सवाल है पंकज वोहरा कहते हैं, "ये प्रोटोकॉल का मुद्दा नहीं है. ये पुल जनता के लिए बना है. वहां के चुने हुए सांसद और जनता के दूसरे प्रतिनिधियों को बुलाना चाहिए था. मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी बुलाना चाहिए था जिनके ज़माने में ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था."
आम आदमी पार्टी के मंत्री और ख़ास तौर से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ये कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली की पूरी जनता को बुलाया था. लेकिन रविवार के हादसे के बाद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने एक ट्वीट में बयान दिया कि उन्होंने जान बूझ कर मनोज तिवारी को नहीं बुलाया.
वो आगे कहते हैं, "यह मोदी सरकार का शासन है जिसके अंतर्गत दिल्ली में निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री को किसी भी उद्घाटन समारोह में आमंत्रित नहीं किया जाएगा. हमने जानबूझकर (तिवारी) को आमंत्रित नहीं किया था."
सिसोदिया ने दावा किया कि "आईटीओ में स्काईवॉक के उद्घाटन के लिए दिल्ली सरकार से किसी को भी आमंत्रित नहीं किया गया था."
पंकज वोहरा कहते हैं कि वो आम आदमी पार्टी की इस शिकायत को समझते हैं. "दिल्ली में चुनी सरकार को केंद्र सरकार ने हर तरह से बेइज़्ज़त करने की कोशिश की है. उनके काम में बाधाएं डालने की कोशिश की है. मुख्यमंत्री को कई उद्घाटन समारोहों में नहीं बुलाया गया. तो इस तरह से इनकी दुश्मनी गहरी हो चुकी है. तो उनके (मनोज तिवारी को न बुलाने के) फ़ैसले को इस दृष्टिकोण से भी देख सकते हैं."
पंकज वोहरा कहते हैं कि प्रोटोकॉल को अब कोई सत्तारूढ़ पार्टी नहीं मानती. लेकिन प्रोटोकॉल है. हर राज्य सरकार का औपचारिक रूप से प्रोटोकॉल लिखित रूप में मौजूद है. दिल्ली सरकार के प्रोटोकॉल के अनुसार किसी भी बड़े समारोह में उपराज्पाल मुख्यमंत्री की तरफ़ से वीआईपी गेस्ट बुलाते हैं जिनमे सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्रियों के अलावा, विपक्ष के नेता, सांसद और विधायक, पूर्व सियासी और सरकारी नेताओं के नाम भी शामिल किए जाते हैं.
प्रोटोकॉल के अलावा सत्ता में परंपरा की अपनी एक जगह है. पिछले कई सालों की परम्परा विपक्ष के नेताओं को सरकारी समारोहों में बुलाने की है. पंकज वोहरा बीजेपी के एक बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के काल को याद करते हुए कहते हैं कि वो हर पार्टी के नेताओं से अच्छे संबंध रखते थे और सरकारी समारोहों में सभी नेताओं को निमंत्रण भेजते थे. शीला दीक्षित ने अपने 17 साल के काल में सभी नेताओं से संबंध बना कर रखने की कोशिश की
लेकिन ये भी सभी मानते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दिल्ली की चुनी सरकार के साथ भेद-भाव का सलूक किया गया है. सोशल मीडिया पर इसके उदहारण भी दिए जा रहे हैं.
साल 2009 में दिल्ली से उत्तर प्रदेश (नोएडा) जाने वाली पहली मेट्रो लाइन के उद्घाटन में एक तरफ़ दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शामिल थीं तो दूसरी तरफ़ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती.
लेकिन पिछले साल मजेंटा लाइन के उद्घाटन के समय नरेंद्र मोदी के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल थे लेकिन अरविंद केजरीवाल को इसमें नहीं बुलाया गया था.
मोदी के पक्ष में कहने वालों का तर्क ये है कि ये उद्घाटन समारोह नोएडा में हुआ था इसलिए यूपी के मुख्यमंत्री आए थे और दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया गया था. लेकिन मैजंटा लाइन के अधिकतर स्टेशन दिल्ली में हैं और दिल्ली का इसके निर्माण में एक बड़ा योगदान है
पंकज वोहरा कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल एक बड़े दिल वाले नेता का सबूत देते हुए मनोज तिवारी को बुलाते तो लोगों में इससे एक अच्छा पैग़ाम जाता.