Thursday, January 31, 2019

जॉर्ज फ़र्नांडिस कुछ कर गुज़रने को बेचैन रहते थे- नज़रिया

जॉर्ज साहब अर्थात जॉर्ज फ़र्नांडिस का जाना हमारी मौजूदा राजनीति के एक दौर का अंत है. इस लेखक के लिए चालीस साल से ज़्यादा समय उनकी धारा की वैचारिक राजनीति में कभी प्रेम कभी लड़ाई करने के बाद उनका जाना यह काफ़ी कुछ निजी नुकसान भी लगता है.
पर जिस हालत वे पिछले कई वर्षों से पड़े थे वह उनकी शख़्सियत के हिसाब से ज़माना लग रहा है, वरना जॉर्ज ज़िंदा हों और इतने वर्ष कुछ बड़ा न हो यह असंभव था.
कर्नाटक के एक पादरी परिवार के इस व्यक्ति ने परिवार से, समाज से बगावत करके ही समाजवादी राजनीति शुरू की, वह भी मुंबई में और सीधे एसके पाटिल से भिड़े और धूल चटा दी.
जॉर्ज तब क्या रहे होंगे इसकी एक झलक तब भी दिखी जब इंदिरा गांधी रायबरेली से हारने के बाद कर्नाटक के बेल्लारी से उपचुनाव लड़ने गईं और जॉर्ज साहब ने विपक्ष का अभियान संगठित किया.
मुंबई में जमने और राजनीति जमाने के तो अनगिनत किस्से हैं. पर यह सब उनकी दिलेरी, समझ, जबरदस्त भाषण कला और समाज के लिए कुछ करने की जबरदस्त इच्छाशक्ति से संभव हुआ. वे चुनाव लड़ने मुंबई नहीं गए थे.
उनको ट्रेड यूनियन करना था और सारे स्थापित दलों-जिनमें कम्युनिस्ट और कांग्रेस से जुड़े यूनियनों के बीच उन्होंने न सिर्फ़ अपना झंडा गाडा बल्कि टैक्सीमेंस यूनियन के लिए बैंकिंग, सहकारी दुकान और गाड़ियों के मेंटेनेंस की सहकारी व्यवस्था शुरू की.
मुम्बई की टैक्सी सेवा और टैक्सीवालों का संगठन आज भी सबसे अलग है. आज मज़दूर आंदोलन के पस्त होने और जार्ज साहब की अपनी राजनीति के 'द एन्ड' तक पहुंचने के बावजूद उनके आंदोलन के ये पौधे लहलहा रहे हैं.
पर जार्ज साहब के यूनियन पॉलिटिक्स का असली रंग रेलवे मज़दूरों के बीच और 1974 की देशव्यापी हडताल में दिखा जिसने सबसे ज़्यादा असर डाला 'आयरन लेडी' इंदिरा गांधी पर.
उसके बाद से आज तक 45 वर्षों में फिर वैसी कोई हड़ताल नहीं हुई. और जब जॉर्ज साहब की टोली ने उसी इंदिरा से लड़ाई में मुल्क को गरमाने के लिए बम की पॉलिटिक्स (जैसा समाजवादियोँ ने 1942 में किया था) करनी चाही तो उन्हें और उनके साथियों को बड़ौदा डायनामाइट केस में उलझाया गया.
उन पर देशद्रोह का मुक़दमा चला, सख़्त जेल हुई, जंजीरों में जकड़े गए.
पर जॉर्ज जेल से ही चुनाव जीते, जंजीरों में जकडे जार्ज की तस्वीर ने कांग्रेस के एक और दिग्विजयी को परास्त कर दिया तीन लाख से ज़्यादा वोटों से. वे अपने परिचित मुंबई, बैंगलुरु या दिल्ली से नहीं सुदूर बिहार के मुजफ्फरपुर से लड़े और जीते थे जहाँ उनका कट-आउट ही घूमा था.
घनघोर जातिवादी राजनीति (पहले राजपूत बनाम भूमिहार और बाद में अगड़ा बनाम पिछड़ा) का अखाड़ा जॉर्ज का अपना बन गया जबकि वहां 10-20 क्रिश्चियन वोट न होंगे.
वह उनका नया ठिकाना बना जो आख़िर तक मन में बसा रहा और कमज़ोर होकर भी वे वहीं लडे, ज़मानत जब्त कराई पर मुजफ्फ़रपुर का मोह नहीं छोडा.
जॉर्ज जब जनता पार्टी की राजनीति में विभाजन के समय मोरारजी सरकार के बचाव में जबरदस्त भाषण देने के बाद चरण सिंह के पक्ष में जा रहे थे तब दिल्ली में उनके आवास के गेट पर 100 से ज्यादा समर्थकों ने धरना दिया.
इनमें प्रो. रजनी कोठारी, धीरुभाई सेठ, सच्चिदानन्द सिन्हा, विजय प्रताप जैसे लोगों के साथ यह लेखक भी थी. कोठारी साहब जनता पार्टी का घोषणा पत्र लिखने वालों के साथ एजेंडा फ़ॉर इंडिया नाम से एक संवाद सिरीज़ चला रहे थे.
सच्चिदा बाबू जार्ज के मुंबई के दिनों के दोस्त होने के साथ मुजफ्फरपुर से उनको चुनाव लड़ाने वाले शख़्स थे. वही उनके चुनाव एजेंट थे. जॉर्ज कई बार उसी दरवाजे से आए गए लेकिन किसी से दुआ-सलाम नहीं, किसी को पानी के लिए भी नहीं पूछा.
जॉर्ज ऐसे न थे. उनके यहां तो गुरुजी जैसा साथी या पात्र रहता था जो खाता-पीता रहता था. वहाँ और दिन भर मजे से जॉर्ज की आलोचना करता था. उनके सबसे भरोसेमंद लोगों में विनोदानन्द प्रसाद सिंह, शरद राव, विजय नारायण और चंचल भी थे जिन्हें जॉर्ज की भक्ति से परहेज रहा.
पर साफ़ लगता है कि जॉर्ज यहीं से अपने लिए लोगों की राजनीति को नीचे करके सत्ता की राजनीति को ऊपर ले आए. कोई वंशवाद नहीं किया, कोई साम्राज्य नहीं बनाया, स्विस बैंक का खाता नहीं खोला, हत्या/दंगा नहीं कराया, बेटा-बीबी को आगे नहीं किया लेकिन सत्ता की चिंता ऊपर हो गई.
यूनियन का काम, संसद के अंदर का काम, लोगों के बीच जाने का काम, मुल्क की राजनीति के ज़रूरी मुद्दे पहचानकर लड़ने-भिड़ने का काम अब पीछे चला गया. शायद सत्ता से ही सामाजिक बदलाव का भरोसा हो गया हो.

Monday, January 14, 2019

ميسي الأفضل في تاريخ الدوري الإسباني بعد تسجيله هدفه رقم 400

سجل اللاعب الأرجنتيني ليونيل ميسي هدفه رقم 400، في الدوري الإسباني، وذلك في المباراة التي فاز فيها فريقه برشلونة، على ضيفه فريق إيبار، بثلاثة أهداف نظيفة.
وبهذا الفوز يتصدر برشلونة ترتيب الدوري الإسباني، بفارق خمس نقاط عن فريق أتليتيكو مدريد، الذي يحتل المركز الثاني.
وأحرز ميسي الهدف الثاني لبرشلونة خلال المباراة، وعزز موقعه، كأفضل هداف في تاريخ الدوري الإسباني على الإطلاق. وجاء الهدف في المباراة رقم 435 له في الدوري الإسباني.
وسجل لويس سواريز الهدفين الأول والثالث لبرشلونة خلال اللقاء.
وأصبح ميسي أول لاعب يسجل 400 هدف، في بطولة واحدة، من ضمن أقوى خمس دوريات لكرة القدم في أوروبا.
إنجازات رائعة
  • الهدف يعزز موقع ميسي، كأفضل هداف في تاريخ الدوري الإسباني على الإطلاق، يليه في المركز الثاني رونالدو، لاعب فريق يوفينتوس الإيطالي حاليا، بحصيلة 311 هدفا، خلال 292 مباراة لعبها في فريق ريال مدريد، ثم تيلمو زارا في المركز الثالث، الذي سجل 251 هدفا، في الدوري الإسباني.