पासपोर्ट, बैंक खाते (जनधन के अलावा), ड्राइविंग लाइसेंस, मोबाइल समेत अनेक सुविधाओं में सरकारी सब्सिडी की सुविधा नहीं मिलती तो फिर उन्हें आधार से जोड़ना क्यों ज़रूरी है? सरकार ने इस पर समूचित स्पष्टीकरण शायद ही दिया गया हो.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सोशल मीडिया हब के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया तो फिर आधार के बढ़ते निगरानी तंत्र को कैसे जायज़ ठहराया जा सकता है?
आधार शुरू से ही विवादों में रहा है. कॉन्क्रीट की ऊँची दीवारों की सुरक्षा व्यवस्था के बीच आधार डेटा को पूर्ण सुरक्षित बताते हुए एटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में हैरतअंगेज़ दावे किेए. दूसरी ओर 2500 रुपये में आधार डेटा हैक करने के सॉफ्टवेयर की ख़बरों से लोग सकते में हैं.
यूआईडीएआई के 12 अंकों के आधार नंबर को गोपनीय रखने के लिए 16 अंकों की वर्चुअल आईडी (वीआईडी) व्यवस्था को लागू किया जाता है.
दूसरी ओर ट्राई के चेयरमैन आधार नंबर को सोशल मीडिया पर जारी करते ही डिजिटल कुश्ती शुरू हो जाती है.
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हिंदुओं को ग़ुस्सा आता है तो लोग चकित हो जाते हैं, स्तब्ध रह जाते हैं.
वो समझते हैं कि ये तो हिंदू धर्म का मूल नहीं है.आजकल चारों तरफ़
हिंदुओं का ग़ुस्सा बहुत दिखाई देता है, पर ज़्यादातर लोग इसे समझ नहीं
पाते. समझने की कोशिश भी नहीं करते. ये बीमारी 100 साल से धीरे-धीरे बढ़ रही है और अब यह एक ज्वालामुखी की तरह फटा है.
इसकी वजह है कि हिंदुओं को लगता है कि देश भर के जो दूसरे धर्म के मानने वाले हैं, या वे लोग जो ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, वे हिंदू धर्म के विरुद्ध हैं. इन लोगों के लिखने में या बोलने में हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह दिखाई देता है.
अगर आपको ईसाइयत को समझना हो तो आप बाइबिल पढ़ सकते हैं, इस्लाम को समझना है तो क़ुरआन पढ़ सकते हैं, लेकिन अगर हिंदू धर्म को समझना है तो कोई शास्त्र नहीं है जो यह समझा सके कि हिंदू धर्म क्या है. हिंदू धर्म शास्त्र पर नहीं बल्कि लोकविश्वास पर निर्भर है. इसका मौखिक परंपरा पर विश्वास है.
आधार के दौर में राइट टू बी फॉरगॉटेन यानी जीवन में पहले घटित घटनाओं को भूलने का अधिकार- ट्राई द्वारा जारी कंसलटेशन पेपर और जस्टिस श्री कृष्णा समिति की रिपोर्ट के बावजूद जनता को अपने डेटा पर अधिकार नहीं मिला है. आधार के डेटा लीक और इससे नुकसान के लिए जनता को कैसे राहत मिल सकती है, इस बारे में भी आधार क़ानून में स्पष्टता नहीं है.
प्रस्तावित डेटा सुरक्षा क़ानून में यूआईडीएआई पर क़ानूनी जवाबदेही के माध्यम से आधार डेटा की सुरक्षा और हर्जाने का क़ानूनी तंत्र बनाया जा सकता है. यूरोपियन यूनियन की तर्ज़ पर श्री कृष्णा कमेटी ने राइट टू फॉरगॉटेन पर क़ानून बनाने की सिफारिश की है.
सवाल यह है कि सरकारी दफ़्तरों में क़ैद बायोमैट्रिक्स अब 120 करोड़ लोगों को भूलने की इजाज़त कैसे देंगे?
उत्तर भारत का हिंदू धर्म, दक्षिण भारत के हिंदू धर्म से अलग है. पाँच सौ साल पहले का हिंदू धर्म आज के हिंदू धर्म से बहुत अलग है. हर जाति, हर प्रांत और भाषा में हिंदू धर्म के अलग-अलग रूप होते हैं. यह विविधता ज़्यादातर लोगों की समझ में नहीं आती.
हिंदू धर्म को हज़ारों साल से ग़लत समझा गया है. जब मुसलमान भारत आए तो उन्होंने हिंदुओं को बुतपरस्त कहा और मूर्तिपूजा की निंदा की. उनको लगा कि मूर्तिपूजा ही हिंदू धर्म है. जब अंग्रेज़ आए तो उन्होंने कहा कि यह 'बहुदेववाद' है जिसे उन्होंने झूठ या मिथ्या का दर्ज़ा दिया और एकेश्वरवाद को सत्य बताया.
इससे भारतीय लोग दबाव में आए. अगर आप आज़ादी की लड़ाई के दौरान किया गया लेखन पढ़ें तो भारतीय बुद्धिजीवी एक तरह से बचाव की मु्द्रा में नज़र आते हैं. अंग्रेज़ों के दौर के ज्यादातर बुद्धिजीवी उनकी बात मानते हुए दिखते हैं. उन्होंने हिंदू धर्म को समझने की बजाय उसको सुधारने की कोशिश शुरू की.
उनके लेखन में हम देखते हैं कि सगुण भक्ति की निंदा, निर्गुण भक्ति की प्रशंसा, मूर्ति पूजा की निंदा, रीति-रिवाजों की निंदा - ये सब चलन में आया.
उन लोगों ने ऐसा हिंदू धर्म बनाने की कोशिश की जो पाश्चात्य धर्मों से जु़ड़ सकता हो. पाश्चात्य धर्मों में शास्त्र और नियम बहुत स्पष्ट हैं. एक प्रकार का सुधार आंदोलन शुरू हो गया.
हिंदू धर्म को एक ख़ास रूप देने का काम 200 साल पहले अंग्रेज़ों ने किया. और जब वो ये काम कर रहे थे तो उनकी जो पढ़ाई-लिखाई थी वो सब राजनीति से प्रेरित थी, इसलिए वे दिखाना चाहते थे कि हिंदू धर्म ईसाई धर्म से नीचे है.
धीरे-धीरे दुनिया जब धर्मनिरपेक्षता की तरफ़ गई तो हम अंग्रेज़ विद्वानों की जगह वामपंथी विचारकों की ओर देखने लगे. वामपंथी लोग धर्म को मानते ही नहीं है इसलिए वे हर धर्म की निंदा करते हैं. हिंदू धर्म की तो ख़ासतौर पर कड़ी निंदा करते हैं. उनके लेखन में ऐसा लगता है कि वे हिंदू धर्म का विश्लेषण कर रहे हैं या उसके बारे में लोगों को समझा रहे हैं, लेकिन किताबों के माध्यम से एक तरह का सुधार आंदोलन चलाया जाता है.
इस विचार में हिंदू धर्म को केवल स्त्री-विरोधी और जातिवादी मान लिया जाता है और हिंदू धर्म की बड़ी चीज़ों जैसे कि वेदांत को सिर्फ़ एक छलावा समझा जाता है.
वामपंथी विचारक समझाते हैं कि वेदांत और भारतीय दर्शन तो हाथी के दांत की तरह दिखाने के लिए हैं, हिंदू धर्म की सच्चाई तो जातिवाद ही है.
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